Sardar Manjeet Singh is a renowned poet of humour and satire. He has made around 56 visits abroad for performances, which is a remarkable achievement. Kavi Manjeet's mother tongue is Punjabi and he holds a Masters in English and writes in Hindi. His humour is unparalleled.
Kavi Manjeet writes: (पिता की व्यथा ):-
पिता की व्यथा
माना मां ममता की सरिता ,मीठी उसकी बोली है
पर बाप समंदर खारा क्यों ,उसकी बोली क्यों गोली है ।
अधनींदी आंखों ने, सूखापन था सारी रात दिया
जब तक तुम चलना ना सीखे, हर पल तेरे संग जिया ।
गर्भ में तुम को पुष्ट करे जो केवल वो ही खाया था
दूध पिला ,दुलरा,लाड़ कर, चलना तुम्हें सिखाया था ।
जो मांगो बाप दे देता ,रखता जादू की झोली है ।
स्कूल गए थे तब मां ने हर रोज ही टिफिन सजाया था
लौटे तो चिपक के गोदी से ,दिन भर का हाल सुनाया था ।
जब चोट लगी तुम को बाहर, माता के आंसू याद रहे
भीतर-भीतर रोने वाला, किससे जा अपनी व्यथा कहे ।
पत्थर, कठोर उसको कहतीं , ये अबलाओं की टोली है ।
सोलह की उम्र के सब सपने, वो मां से साझी करता है
बापू से कुछ भी लेने को, वह मां को राजी करता है
उसके सपनों की डोर सदा ,मां के हाथों में रहती है जब पतंग उड़े ज्यादा ऊंची ,सब हाल पिता से कहती है ।
उस फटी पतंग संग जो रोती ,वो मां तो बहुत ही भोली है ।
जब सांझ के सूरज का प्रकाश, बिल्कुल धुंधला पड़ जाता है
तब घर के आंगन का जुगनू, सूरज को आंख दिखाता है।
मां चांद सरीखी पुजती है ,बेटा सूरज बन जाता है
जो अंधकार से सदा लड़ा,अंधियारे में खो जाता है
अंदर तक आंसू रोते हैं ,खाली होती जब खोली है।
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Contact: Kavi Manjeet Singh @www.gurugiri.ca
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